Test – रांची से गुवाहाटी… और फिर सोशल मीडिया की गलियों तक—टीम इंडिया का दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 0-2 से सूपड़ा साफ होना सिर्फ एक क्रिकेट स्कोरलाइन नहीं रहा।
यह उस बेचैनी की आवाज़ बन गया जिसे भारत के टेस्ट फैंस पिछले एक साल से महसूस कर रहे थे। और इस बार निशाने पर सिर्फ खिलाड़ी नहीं, पूरा तीर सीधे कोच गौतम गंभीर की तरफ जा लगा।
गंभीर की कोचिंग के दौरान भारत ने घर में खेले गए पिछले 7 में से 5 टेस्ट हारे हैं—यह आंकड़ा भारतीय क्रिकेट के आधुनिक इतिहास में लगभग असंभव माना जाता था। कभी “फ़ोर्ट्रेस इंडिया” कहलाने वाला घरेलू क्रिकेट अब टूटा-फूटा, दिशा-विहीन और नतीजों के मामले में अनपहचाना लग रहा है।
गुवाहाटी टेस्ट की शाम, जब स्टेडियम से भीड़ निकल रही थी, तभी स्टैंड्स के एक हिस्से में अचानक नारे गूंज उठे—
“गौतम गंभीर हाय हाय!”
“गंभीर गो बैक!”
यह सिर्फ नाराज़गी नहीं, बल्कि निराशा थी—उस फॉर्मेट में जहां भारत हमेशा राजा रहा है।
गंभीर पर बढ़ता दबाव—फैंस कह रहे “कोच बदलो”
सोशल मीडिया तो मानो इस हार का इंतज़ार कर रहा था।
ट्विटर और इंस्टाग्राम पर #SackGambhir ट्रेंड में चला गया।
बहुत से फैंस का कहना है कि गंभीर की अप्रोच बहुत आक्रामक, बहुत प्रयोगवादी और बहुत असंतुलित हो गई है।
कुछ प्रमुख आरोप ये लगाए जा रहे हैं—
- बैटिंग ऑर्डर में लगातार फेरबदल
- रोटेशन के नाम पर स्पेशलिस्ट खिलाड़ियों को हटाना
- “हर खिलाड़ी ऑलराउंडर” जैसी सोच
- घरेलू खिलाड़ियों के बजाय सफेद गेंद विशेषज्ञों को टेस्ट में घुसाना
- पिच और मैच कंडीशंस के हिसाब से गलत XI
और इसी बहस में सबसे तेज़ तीर चलाए पूर्व क्रिकेटर मनोज तिवारी ने।
“कोई एक असली ऑलराउंडर बता दीजिए”—मनोज तिवारी का गंभीर पर सीधा वार
हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में तिवारी ने बिना लाग-लपेट के गंभीर की रणनीतियों पर सवाल उठाए।
उनका सबसे चुभता हुआ बयान यही था:
“हमारी टीम में एक खिलाड़ी का नाम बता दीजिए जिसे असली ऑलराउंडर कहा जा सके… कोई नहीं है।”
फिर उन्होंने असली ऑलराउंडर की परिभाषा याद दिलाई—
कपिल देव, जैक्स कैलिस, इयान बॉथम
यानी वे खिलाड़ी जो अकेले मैच पलट सकते थे।
तिवारी का इशारा साफ था—गंभीर टीम में “ऑलराउंडर टाइप” खिलाड़ियों को भर रहे हैं, जबकि न वे बॉलिंग से मैच जिता सकते हैं, न बैटिंग से।
“टेस्ट क्रिकेट में स्पेशलिस्ट चाहिए”—तिवारी की पत्थर-सी सचाई
उन्होंने आगे कहा:
“डोमेस्टिक क्रिकेट में ऐसे खिलाड़ी हैं जो कंडीशंस के हिसाब से खुद को ढालना जानते हैं। अगर उन्हें नजरअंदाज़ करोगे और सफेद गेंद के खिलाड़ियों को टेस्ट में घुसाओगे, तो नतीजा यही होगा।”
तिवारी का यह बयान उन कई पूर्व खिलाड़ियों की राय से मेल खाता है जो कह रहे हैं कि:
भारत टेस्ट खेलने की कला भूल रहा है।
और इसके लिए चयन से लेकर रणनीति तक कई स्तरों पर बदलाव की जरूरत है।
“रेड बॉल क्रिकेट के लिए अलग कोच लाओ”—तिवारी की बड़ी मांग
तिवारी ने साफ कहा कि बीसीसीआई को अब एक कठोर निर्णय लेना होगा—
सफेद गेंद और लाल गेंद के लिए अलग-अलग कोच।
दुनिया में यह मॉडल पहले से मौजूद है—इंग्लैंड इसका सफल उदाहरण है।
उनके मुताबिक:
- गंभीर का फोकस सफेद गेंद पर ठीक है
- लेकिन रेड बॉल क्रिकेट की सूक्ष्म समझ अलग तरह की होती है
- और अभी भारत का टेस्ट ढांचा बिखर रहा है
तिवारी ने यहां तक कहा कि:
“चैंपियंस ट्रॉफी और एशिया कप जीतना गंभीर का काम नहीं था—यह टीम पहले से तैयार थी, रोहित, द्रविड़ और उससे पहले कोहली ने इसे बनाया था।”
यानी, मौजूदा उपलब्धियों का क्रेडिट गंभीर को देना भी कई खिलाड़ियों को सही नहीं लगता।
सवाल—क्या सच में गंभीर टेस्ट क्रिकेट के लिए सही फिट नहीं?
यह सवाल अब सिर्फ दर्शकों का नहीं, क्रिकेट दिग्गज भी चर्चा कर रहे हैं।
गंभीर की अप्रोच:
- आक्रामक — टीम इससे जुड़ नहीं पा रही
- रोल क्लैरिटी कम — हर मैच में अलग संयोजन
- स्पेशलिस्ट को किनारे करना — टेस्ट क्रिकेट में भारी खामियां
- बहुत जल्दी प्रयोग करना — खासकर ओपनिंग और मिडिल ऑर्डर
अंदर की खबरों के मुताबिक, कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों ने भी टीम मैनेजमेंट से रणनीति पर नाराजगी जताई है।
और सच कहें तो टेस्ट क्रिकेट में भारत की पहचान यह कभी नहीं रही कि उसे हर मैच में नई रणनीति तलाशनी पड़े—बल्कि वही पहचान है कि वह टेस्ट में स्थिरता, धैर्य, गहराई और कंडीशन-आधारित क्रिकेट खेलता है।
क्या BCCI गंभीर को हटाएगी?—अगले 3 हफ्ते निर्णायक
बीसीसीआई के अंदर इस मामले पर कुछ गर्माहट जरूर बढ़ी है—खासकर क्योंकि:
- भारत घर में लगातार टेस्ट हार रहा है
- दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड जैसी टीमें भारत को उनके ही घर में टार्गेट कर रही हैं
- WTC पाथ भी खतरनाक हो गया है
बीसीसीआई का स्टाइल हमेशा शांत रहता है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट को लेकर वह उतना ही संवेदनशील है जितना कोई फैन।
अगले 2–3 हफ्तों में आंतरिक समीक्षा जरूर होगी—और एक संभावित विकल्प खुलकर चर्चा में है:
रेड-बॉल हेड कोच + व्हाइट-बॉल हेड कोच मॉडल
अगर ऐसा होता है, तो गंभीर शायद सिर्फ सफेद गेंद तक सीमित हो जाएं।















