KKR : वह सख्त नहीं अनुशासित हैं—गुरबाज की गंभीर के बारे में अंदरूनी बातें

Atul Kumar
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KKR – दुबई की शामें अक्सर क्रिकेटरों को हल्का कर देती हैं—थोड़ा सूकून, थोड़ा फुर्सत। लेकिन रहमानुल्लाह गुरबाज जब आईएलटी20 की तैयारियों के बीच बैठे थे, तो बातचीत का रुख अचानक भारत की सबसे गर्म बहस पर मुड़ गया—गौतम गंभीर की कोचिंग।

भारत में गंभीर के तौर-तरीकों पर जितना शोर है, उतनी ही तेज़ी से अफगानिस्तान के इस युवा विकेटकीपर-बल्लेबाज ने कहा—“मैं हैरान हूं… लोग गलत समझ रहे हैं। वह सर्वश्रेष्ठ कोच हैं।”

टेस्ट में लगातार 0-3 (न्यूजीलैंड) और 0-2 (दक्षिण अफ्रीका) की हार ने गंभीर को निशाने पर ला दिया है। दो साल में भारत घर में पाँच टेस्ट हार चुका है, जबकि 2012–2024 का दौर ऐसा था जिसमें कोई विदेशी टीम भारत में टेस्ट सीरीज छू भी नहीं पाती थी। इसलिए दबाव, आलोचना, और सोशल मीडिया ट्रायल—सब स्वाभाविक हैं। पर गुरबाज का नज़रिया बिल्कुल उल्टा है, और पूरे तर्क के साथ है।

“1.40 अरब में से कुछ लाख नाराज़ होंगे… बाकी गंभीर सर के साथ हैं”

गुरबाज का बयान कड़ा भी था और स्पष्ट भी।
उनसे पूछा गया कि गंभीर की इतनी आलोचना क्यों हो रही है तो वह बोले:

“आपके 1.40 अरब लोगों में से 20–30 लाख उनके खिलाफ हो सकते हैं, लेकिन बाकी तो उनके साथ हैं।”

दुबई में PTI को दिए इंटरव्यू में यह लाइन ऐसी लगी जैसे किसी ने माहौल की परतें चीरकर एक नई बहस शुरू कर दी हो।
गुरबाज गंभीर के साथ KKR के चैंपियन सीजन (2024) में थे—वह उस ड्रेसेिंग रूम को भीतर से देखते रहे। इसलिए उनका बयान सिर्फ समीकरण नहीं, अनुभव पर आधारित था।

गंभीर की सबसे बड़ी ताकत—“ड्रेसिंग रूम में माहौल जो दबाव मिटा देता है”

IPL 2024 के बाद KKR कैंप में एक बात आम थी—माहौल।
गुरबाज के मुताबिक गंभीर की सबसे बड़ी ताकत यही थी:

“जब माहौल अच्छा होता है, तो आप हमेशा शिखर पर होते हैं। उन्होंने ऐसा माहौल बनाया जिसमें कोई दबाव नहीं था। इसलिए हम जीते।”

KKR की जीत को सिर्फ नरेन, रसेल, वेंकटेश अय्यर की फॉर्म से नहीं जोड़ा जा सकता। टीम उस सीजन में एक मशीन की तरह खेल रही थी—प्लान साफ, टेम्पो आक्रामक, और दबाव शून्य।
गंभीर की इस क्षमता को शायद भारत फुल-टाइम कोच के रूप में अभी परख पा रहा है। हालांकि टेस्ट क्रिकेट का मानसिक दबाव T20 से दस गुना अधिक होता है—उसमें समय लगता है।

“गौतम सर सख्त नहीं, सिर्फ अनुशासित हैं”—गुरबाज का अंदरूनी नजरिया

गंभीर की छवि अक्सर एक कठोर, गुस्सैल, तिलमिलाए हुए कोच की दिखाई जाती है।
लेकिन गुरबाज ने बड़ा दिलचस्प दृष्टिकोण दिया:

“वह सख्त नहीं हैं, अनुशासित हैं। नियम तोड़ो तो सख्त हो जाते हैं।”

यह बात IPL डगआउट में अक्सर सुनी जाती थी—गंभीर कठोर नहीं, बल्कि क्लैरिटी वाले कोच हैं। जिसका काम, उसकी भूमिका, उसकी जिम्मेदारी—सब पहले दिन स्पष्ट कर दी जाती है।
और सच यह है कि आधुनिक टीमों को ऐसे कोच से फायदा ही मिलता है।

“भारत ने कितना जीता है… एक सीरीज के लिए दोष देना ठीक नहीं”

टेस्ट हारों के बाद सोशल मीडिया में जिस तरह गंभीर की आलोचना हुई है, उससे गुरबाज बिल्कुल सहमत नहीं हैं।
उन्होंने गिना भी दिया,
— चैम्पियंस ट्रॉफी में जीत
— T20 एशिया कप में जीत
— कई टेस्ट और ODI सीरीज
— टूर्नामेंट दर टूर्नामेंट स्थिरता

गुरबाज का तर्क था—कोच को एक हार पर नहीं, प्रक्रिया पर आंका जाना चाहिए।
और यह बात वह खिलाड़ी कह रहा है जिसने गंभीर के नीचे निकटता से काम किया है।

“खराब फॉर्म में आलोचना नहीं, सपोर्ट चाहिए”—गुरबाज का सबसे मानवीय संदेश

गुरबाज की अंतिम लाइन शायद पूरे विवाद का सार है:

“हार गए तो क्या हुआ? वे भी इंसान हैं। ऐसे समय में सहयोग की जरूरत होती है।”

यह बात सिर्फ खिलाड़ियों पर नहीं, शायद कोच पर भी लागू होती है।
गंभीर की रणनीति में गलतियाँ हैं—हाँ।
टीम कॉम्बिनेशन अस्थिर है—हाँ।
टेस्ट में भारत की पहचान कमजोर पड़ी है—यह भी सच है।

लेकिन गुरबाज जिस चीज़ पर जोर दे रहे हैं, वह यह कि अंतरराष्ट्रीय टीमों में सुधार समय लेता है और कोचिंग को एक सीरीज या दो सीरीज से नहीं परखा जाता।

भारत की आलोचना—और KKR का संतुलन—क्या गंभीर को अभी समय चाहिए?

यह सवाल अब खुलकर सामने है:
क्या गंभीर की कोचिंग शैली—स्पष्टता, सीधी बात, रोल बेस्ड अप्रोच—IPL में जितनी प्रभावी है, टेस्ट में भी उतनी प्रभावी होगी?

टेस्ट की परिस्थितियाँ अलग हैं, दबाव अलग है, और खिलाड़ियों की तकनीकी कमजोरियाँ भी कहीं अधिक उजागर होती हैं।
पर गुरबाज की तरफ से आए समर्थन ने यह तो साबित कर दिया कि गंभीर ड्रेसिंग रूम मैनेजमेंट के स्तर पर कमजोर नहीं हैं।

यह वही कौशल है जिसने KKR को सात साल बाद IPL ट्रॉफी दिलाई थी।

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