5 क्रिकेटर जिन्होंने पिता से ज्यादा कमाया नाम- क्रिकेट के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां दो भाइयों ने एक-दूसरे के साथ खेला है। पिता-पुत्र की जोड़ी का भी इंटरनेशनल क्रिकेट में खेलना आम बात है।
अर्जुन तेंदुलकर ने हाल ही में पिता सचिन तेंदुलकर के नक्शेकदम पर चलते हुए आईपीएल में डेब्यू किया है। हालांकि, यह वक्त बताएगा कि अर्जुन तेंदुलकर का वक्त कितना लंबा जाएगा। क्रिकेट जगत में कई ऐसे खिलाड़ी हुए हैं, जिनके पिता सुपरस्टार रहे। लेकिन बेटे अपना नाम इस फील्ड में नहीं बना पाए।
इनके अलावा कुछ पिता-पुत्र की जोड़ियां ऐसी भी हैं, जिनके बेटे को क्रिकेट की दुनिया के सुपरस्टार बने, लेकिन पिता अपना नाम नहीं बना सके थे। आज हम ऐसे ही क्रिकेटरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बेटों ने क्रिकेट जगत में अपना नाम बनाया।
योगराज सिंह और युवराज सिंह
युवराज सिंह को क्रिकेट जगत के महानतम ऑलराउंडर्स में से एक माना जाता है। उन्होंने 2000 में आईसीसी नॉकआउट कप के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 84 रन की शानदार पारी के साथ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया।
युवी इंग्लैंड के खिलाफ 2002 नेटवेस्ट ट्रॉफी फाइनल में मोहम्मद कैफ के साथ एक यादगार साझेदारी में शामिल थे। 2007 के आईसीसी विश्व टी20 के दौरानउन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ एक ओवर में छह छक्के मारे और भारत के विश्व खिताब में बड़ी मदद की।
चार साल बाद युवराज ने 2011 आईसीसी क्रिकेट विश्व कप में असाधारण प्रदर्शन किया और उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ से भी नवाजा गया। वहीं, युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह पंजाब के लिए एक होनहार दाएं हाथ के मध्यम गति के गेंदबाज थे, जिन्हें 1980-81 में भारत के एक दौरे के दौरान ब्रेक मिला था। उन्हें वेलिंगटन में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच के लिए टीम में शामिल किया गया था, जहां उन्होंने मैच में केवल 1 विकेट लिया था।
यह उनके करियर का एकमात्र टेस्ट मैच था। इससे पहले उस दौरे में उन्होंने पांच वनडे मैचों में भी भाग लिया था, लेकिन प्रभावित करने में असफल रहे और केवल 4 विकेट ले पाए थे।
इफ्तिकार अली खान और मंसूर अली खान पटौदी
मंसूर अली खान पटौदी ने 21 साल की छोटी उम्र में एक कार दुर्घटना के कारण अपनी दाहिनी आंख की रोशनी गंवाने के कुछ महीने बाद भारतीय क्रिकेट टीम की कमान संभाली थी। करिश्माई दाएं हाथ के बल्लेबाज को देश के अब तक के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों में से एक माना जाता है. उन्होंने 1967 में भारतीय टीम को पहली बार विदेशी टेस्ट जीत दिलाई थी।
उन्होंने 46 टेस्ट मैच खेले और 34.91 के औसत से 2,793 रन बनाए, जिसमें 6 शतक शामिल थे. मंसूर अली के पिता इफ्तिखार अली पटौदी भारत और इंग्लैंड दोनों के लिए टेस्ट मैच खेलने वाले एकमात्र क्रिकेटर हैं। हालांकि, उनका अंतर्राष्ट्रीय करियर केवल छह मैचों तक चला।
1932 में ऑस्ट्रेलिया के दौरे के दौरान इंग्लैंड के लिए अपनी पहली पारी में शतक बनाने के बाद उन्होंने यूरोपीय राष्ट्र के लिए तीन टेस्ट खेले। इफ्तिकार ने अपना आखिरी मैच 1934 में इंग्लैंड के लिए खेला था। इसके लगभग 12 साल बाद 1946 में उन्होंने भारत के लिए तीन टेस्ट खेले, लेकिन अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे।
पीटर पोलॉक और शॉन पोलॉक
शॉन पोलक अपने समय के प्रमुख तेज गेंदबाजों में से एक थे. अपनी शानदार बैटिंग के साथ-साथ वह एक संपूर्ण ऑलराउंडर थे। पोलॉक ने 108 टेस्ट खेले, और अभी भी 421 विकेटों के साथ टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका के सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। 32.31 के प्रभावशाली बल्लेबाजी औसत के साथ उनके नाम पर दो शतक भी हैं।
387 वनडे विकेटों के साथ वह 50 ओवर के प्रारूप में भी अफ्रीकी राष्ट्र के लिए सबसे अधिक विकेट लेने वालों की सूची में सबसे ऊपर हैं। अपने बेटे की तरह पीटर भी अपने युग के दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख तेज गेंदबाज थे। हालांकि, वह उतना प्रभावी नहीं थे, जितना उनका बेटा शॉन बाद में बना, फिर भी पीटर कुछ यादगार प्रदर्शन करने में कामयाब रहा। उन्होंने 28 टेस्ट खेले और 6/38 के करियर सर्वश्रेष्ठ के साथ 116 विकेट लिए।
मिकी स्टीवर्ट और एलेक स्टीवर्ट
एलेक स्टीवर्ट ने श्रीलंका के खिलाफ 1989 में अपना वनडे करियर शुरू किया। वह एक आक्रामक सलामी बल्लेबाज और विकेटकीपर थे। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 8,463 रन बनाए और वनडे इंटरनेशनल में 4,677 रन बनाए।
अपने बेटे की तरह मिकी स्टीवर्ट भी एक सलामी बल्लेबाज और विशेष शॉर्ट-लेग फील्डर थे। सरे के लिए अपने पूरे करियर में काउंटी क्रिकेट खेलने के बाद उन्होंने 1954 में पाकिस्तान के खिलाफ मैच में शतक बनाकर टीम के लिए पदार्पण किया।
मिकी ने 1962 में उसी देश के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया, जब वह 30 साल के थे। उन्होंने लगातार आठ टेस्ट मैच खेले और 1963-64 में उप-कप्तान के रूप में भारत का दौरा किया। अपने छोटे से अंतरराष्ट्रीय करियर में उन्होंने केवल दो अर्धशतक बनाए।
वॉल्टर हेडली और रिचर्ड हेडली
रिचर्ड हेडली को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजों के रूप में जाना जाता है, और टीम में उनकी उपस्थिति ने न्यूजीलैंड को एक ताकत बना दिया था। वह 400 टेस्ट विकेट तक पहुंचने वाले पहले खिलाड़ी थे। उन्हें क्रिकेट में उनके योगदान के लिए 1990 में नाइटहुड दिया गया था और वह न्यूजीलैंड के चयनकर्ताओं के बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष भी हैं।
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रिचर्ड हेडली के पिता वॉल्टर हेडली ने न्यूजीलैंड के लिए केवल 11 मैच खेले। एक खिलाड़ी होने के अलावा, वह एक कप्तान, चयनकर्ता और डाउन अंडर की टीम के प्रबंधक भी थे। हालांकि, वह अपने बेटे की तरह सुपर स्टार नहीं बन पाए।