ODI – रांची की शाम थोड़ा कच्ची थी—हल्की नमी, थोड़ी हवा और उस हवा में एक नई आवाज़। इंडिया–साउथ अफ्रीका के पहले वनडे में जब हर्षित राणा ने तीन विकेट उखाड़े, तो कमेंट्री बॉक्स से लेकर व्हाट्सएप ग्रुप्स तक एक ही सवाल घूम गया—यह लड़का आखिर टीम में आया कैसे? क्या यह Gautam Gambhir का “फेवरिज़्म” है? या कोई गहरी वजह?
लेकिन ठीक तभी एक पुरानी क्लिप फिर से वायरल होने लगी—संदीप शर्मा की। बहुत सधी हुई, बहुत साफ़ भाषा में उन्होंने बताया था कि हर्षित राणा जैसे तेज़ गेंदबाज़ टीम इंडिया में सिर्फ किसी के कहने से नहीं आते—उनके पीछे एक लंबी, व्यवस्थित, और कभी-कभी जोखिम भरी चयन-रणनीति होती है।
और यही क्लिप आज उस बहस के बीच सबसे जरूरी संदर्भ बन गई है।
संदीप शर्मा का तर्क—“रेयर स्किलसेट पहचाना, तो लंबा समय देना ही पड़ता है”
मानवेंद्र के साथ उस बातचीत में संदीप ने एक बात बिल्कुल चीर-फाड़ कर रख दी थी—सेलेक्शन भावनाओं पर नहीं, बल्कि लॉन्ग-टर्म विज़न पर चलता है।
हर्षित के मामले में भी यही हुआ।
उन्होंने कहा था कि तेज गेंदबाज़ों में रेयर स्किल बहुत कम मिलती है—स्पीड, हाइट, हाई-रीपीटेशन एक्शन, और शरीर की मजबूती।
और जब ऐसा टैलेंट दिखता है, तो उसे दो मैच, पाँच मैच नहीं—सालों का समय दिया जाता है।
संदीप के शब्दों में:
“आप टैलेंट पहचानते हो, फिर उसे मैच्योर होने का समय देते हो। वो 140+ डाल सकता है, हाइट अच्छी है, बॉडी मजबूत है। उसे कुछ साल मिलें, तो बहुत बड़ा गेंदबाज़ बन सकता है।”
यह लाइन किसी स्काउटिंग मैनुअल जैसी लगती है—क्योंकि तेज गेंदबाजों के साथ यही होता है।
वे बनते हैं, टूटते हैं, फिर बनते हैं… और बहुत कम लोग उस सफर को झेल पाते हैं।
सेलेक्टर्स का जुआ—“पाँच चुनो, दो ही निकलते हैं”
संदीप की दूसरी बात और भी दिलचस्प थी—चयन प्रक्रिया का अनिश्चित विज्ञान।
उन्होंने कहा था:
“अगर आप ऐसे पाँच खिलाड़ी चुनते हैं, तो सिर्फ एक या दो ही अच्छा करेंगे। तीन या चार बार आप गलत होंगे।”
मतलब साफ़ है—स्पीड और स्किल वाले गेंदबाज़ों पर मौका लेना एक तरह का गैंबल है।
कभी यह जसप्रीत बुमराह बनकर निकलता है, कभी अविनाश कौल की तरह चर्चा में आता है, और कभी पैकअप हो जाता है।
हर्षित राणा 23–24 साल के हैं। यानी वही उम्र जब किसी पेसर की बॉडी और माइंड दोनों बनना शुरू होते हैं।
यही वजह है कि सेलेक्टर्स उन्हें लगातार अंतरराष्ट्रीय माहौल देना चाहते हैं—चाहे बीच-बीच में चोटें, रन-अप इश्यू या लय का उतार-चढ़ाव क्यों न आए।
और यह बात सोशल मीडिया की बहसें अक्सर भूल जाती हैं।
“हर्षित खास है”—केएल राहुल की साफ़ और ठोस स्वीकृति
रांची के मैच के बाद केएल राहुल ने जो कहा, उसने सेलेक्टर्स के इस जुए का पूरा औचित्य समझा दिया।
उन्होंने कहा:
“कोई लंबा, कोई तेज़ गेंद डाल सके, कोई पिच पर हिट कर सके—भारत को इसी की तलाश थी। हर्षित अभी डेवलप हो रहा है, लेकिन उसमें बहुत पोटेंशियल है।”
यह लाइन सिर्फ तारीफ़ नहीं है—यह टीम की रणनीति का सार है।
भारत पिछले कुछ सालों से ऐसे पेसर की तलाश में था जो हार्ड लेंथ को लगातार 140+ पर मार सके।
शमी उम्रदराज़ हो रहे हैं, बुमराह को workload मैनेजमेंट चाहिए, सिराज थोड़ा हॉट-कोल्ड रहते हैं—तो इस गैप को भरने के लिए कोई युवा ज़रूरी था।
हर्षित की खासियत है कि वह:
- हिट-द-डेक लेंथ पर भरोसा करते हैं
- कठोर स्पेल डालते हैं—खासतौर पर नए गेंदबाज़ों की तरह घबराते नहीं
- और सबसे अहम—पिच के उछाल को समझते हैं, जो भारत के बाहर की परिस्थितियों में सोना साबित हो सकता है
रांची का तीन विकेट हॉल—यह सिर्फ आँकड़ा नहीं, एक जवाब भी है
पहले वनडे में हर्षित के 3 विकेट सिर्फ डेब्यू-इम्पैक्ट नहीं थे—इसने दो प्रमुख सवालों को जवाब दे दिया:
- क्या वह बड़े मैच के दबाव में टिकते हैं?
—हाँ, बहुत हद तक। - क्या उनकी स्किल्स इंटरनेशनल स्टैंडर्ड पर काम कर सकती हैं?
—पहला संकेत काफी मजबूत है।
उनकी लेंथ, तेज़ी और जोश—तीनों ने मिलकर बताया कि यह गेंदबाज़ सिर्फ IPL हाइप नहीं है।
चयन को लेकर गम्भीर अच्छाई—गौतम गंभीर की भूमिका पर क्या कहना ठीक है?
बहुत से लोग मान रहे थे कि हर्षित का चयन गंभीर की “पसंद” है।
लेकिन संदीप शर्मा की बातों से यह साफ़ हो जाता है कि यह चयन लंबे समय से सिस्टम में पक रहा था।
भारत में तेज़ गेंदबाज़ों के चयन के नियम, राष्ट्रीय पेस पूल और हाई-परफॉर्मेंस प्रोग्राम की संरचना तथा BCCI pathways guidelines) बिल्कुल स्पष्ट करती हैं कि चयन फेवरिटिज़्म नहीं—स्किल बेस्ड प्रोसेस से होता है।
गंभीर सिर्फ उस टैलेंट को पोषित करने वालों में से एक हैं—निर्माता नहीं।
यहां से हर्षित का सफर किस मोड़ पर है?
उनके लिए सबसे बड़ा चैलेंज अब तकनीक नहीं, बल्कि कंसिस्टेंसी है।
सेलेक्टर्स उन्हें लगातार मौके देंगे—यह अब एक खुला राज़ है।
लेकिन क्या वह पांच मैचों की लय छोड़कर दस मैच की विश्वसनीयता तक जा पाएंगे?
यही असली टेस्ट है।
भारत के पेस अटैक में जगह पाना आधा सफर है—उसे बनाए रखना ही असली कहानी होती है।
और हर्षित के पास उस कहानी को लिखने के लिए बहुत समय है।
















Test : स्पिन तो बचपन से खेलते आए हो—गुवाहाटी टेस्ट पर शास्त्री की खरी-खरी चर्चा फिर वायरल