Test : स्पिन तो बचपन से खेलते आए हो—गुवाहाटी टेस्ट पर शास्त्री की खरी-खरी चर्चा फिर वायरल

Atul Kumar
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Test – ग्वाहाटी से लेकर चेन्नई तक फैली इस हार की कहानी सिर्फ एक स्कोरलाइन नहीं है—यह भारतीय टेस्ट क्रिकेट की उस इमारत में आई दरारों की आवाज़ है, जो एक दशक तक अडिग खड़ी रही। और जो बात इस बहस को और तीखा बनाती है, वह है रवि शास्त्री का साफ़, बिना लाग-लपेट बयान—वह गौतम गंभीर का बचाव करने को तैयार नहीं हैं।

भारत, जो 2012 से 2024 तक घर में कोई टेस्ट सीरीज नहीं हारा—हाँ, एक भी नहीं—वह गंभीर के हेड कोच बनने के बाद 7 में से 5 घरेलू टेस्ट हार चुका है। न्यूजीलैंड ने 3-0 से धोया, दक्षिण अफ्रीका ने 2-0 से समेट दिया। यह वही टीम है जिसे कभी घर में हराना दुनिया की सबसे मुश्किल चुनौतियों में गिना जाता था।

रवि शास्त्री ने प्रभात खबर के पॉडकास्ट टीज़र में जो कहा, उसने चर्चा को आग दे दी—और शायद सही ही किया।

“100 पर 1 विकेट से 130 पर 7”—शास्त्री ने हार की जड़ पर उंगली रख दी

टीज़र में शास्त्री का पहला वाक्य ही आपको चुभता है:
“गुवाहाटी में क्या हुआ? 100 रन पर 1 विकेट, और पहुँच गए 130 पर 7।”

यह सिर्फ एक collapse की बात नहीं।
यह उस मानसिकता का सवाल है, जो एक समय भारतीय टेस्ट टीम की पहचान हुआ करती थी—धैर्य, रेज़िलिएंस, और स्पिन पर महारत।

शास्त्री कहते हैं,
“ये टीम खराब नहीं है। इनके पास बहुत टैलेंट है। खिलाड़ियों को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”

इस एक लाइन में वह उन सभी बहसों को काट देते हैं जो इस प्रदर्शन को “transition phase” या “नई शुरुआत” कहकर खारिज करने की कोशिश करती है।

इंटरव्यू का वो पल—“क्या आप गंभीर का बचाव कर रहे हैं?” और शास्त्री का जवाब

जैसे ही इंटरव्यूअर ने पूछा कि क्या शास्त्री गंभीर का बचाव कर रहे हैं, जवाब बिजली की तरह आया:
“मैं बचाव नहीं कर रहा। 100 प्रतिशत—वह भी जिम्मेदार हैं।”

और फिर वह लाइन, जिसने शायद भारतीय टीम मैनेजमेंट को थोड़ा हिला भी दिया होगा:
“अगर यह मेरे साथ होता, मैं पहली जिम्मेदारी लेता। लेकिन टीम मीटिंग में खिलाड़ियों को भी नहीं छोड़ता।”

यह उसी पुरानी स्कूल की कोचिंग फिलॉसफी की झलक है जिसके दम पर भारत ने विदेशी जमीन पर भी सीरीज जीती थीं—कड़क ईमानदारी और सीधेपन के साथ accountability।

गंभीर के कार्यकाल की चिंता—हार की लकीर कहीं लंबी न हो जाए

गौतम गंभीर एक फाइटर रहे हैं, लेकिन उनके कोचिंग कार्यकाल का शुरुआती टेस्ट रिकॉर्ड सचमुच चिंता पैदा करता है:

हेड कोचघरेलू टेस्ट (हालिया)हार
गौतम गंभीर75
रवि शास्त्री (कुल कार्यकाल)172

गंभीर के दौर की हारें सिर्फ हार नहीं हैं—वे तीबरूपी डोमिनो जैसी हैं:
तेज़ विकेट पर बल्लेबाज़ विफल
स्पिन पर अचानक असुरक्षा
सेशनों में नियंत्रण खो देना
और दबाव आते ही पतन

इन सबने मिलकर भारत की टेस्ट टीम को एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां सवाल सिर्फ रणनीति का नहीं—पहचान का है।

शास्त्री–कोहली युग की तुलना—एक टीम जिसे तोड़ना मुश्किल था

शास्त्री और विराट कोहली के युग को याद कीजिए—
यह वह भारत था जिसे घर में मात देना लगभग नामुमकिन था।
वह टीम टेस्ट क्रिकेट को लड़ाई की तरह खेलती थी—आक्रामक, फिट, मानसिक रूप से कठोर।

शास्त्री के कार्यकाल के मुख्य रिकॉर्ड पर एक नजर:

अवधि2017–2021
टेस्ट जीत प्रतिशत65%
घरेलू टेस्ट हारसिर्फ 2
WTC फाइनल2021
टेस्ट रैंकिंग42 महीने तक नंबर-1
सबसे बड़ा योगदानऑस्ट्रेलिया में दो बार सीरीज जीत

इन आँकड़ों में सिर्फ संख्या नहीं है—यह स्टैंडर्ड है।
और शायद इसी स्टैंडर्ड की परछाईं आज भारत को परेशान कर रही है।

भारत के टेस्ट पतन की असली वजहें—शास्त्री की नज़र से

शास्त्री जिस चीज़ को सबसे ज़्यादा हाइलाइट कर रहे हैं, वह है बुनियादी कौशल की गिरावट।
उनका कहना,
“जब से क्रिकेट खेलना शुरू किया, स्पिन तो खेलते ही आए हो। फिर आज क्या बदल गया?”

यानी बात सिर्फ परिस्थितियों की नहीं—बल्लेबाज़ी के बैसिक्स की है।
घर में स्पिन को आत्मविश्वास से खेलना भारतीय बल्लेबाज़ों की पहचान हुआ करती थी।
लेकिन पिछले दो सालों में यही क्षमता लगातार ढहती दिखी है।

ऐसा क्यों हो रहा है?
कुछ संभावित कारण

संदीप शर्मा की वायरल क्लिप (जिसमें उन्होंने तेज गेंदबाजों के “लॉन्ग आर्क डेवलपमेंट” की बात कही थी) के उलट, टेस्ट बल्लेबाज़ी उसी लंबी योजना से वंचित दिख रही है।

क्या गंभीर जिम्मेदार हैं? हाँ। क्या खिलाड़ी जिम्मेदार हैं? बिल्कुल।

शास्त्री अपनी बात बहुत साफ रख देते हैं—
कोच दोषमुक्त नहीं। खिलाड़ी भी दोषमुक्त नहीं।

गंभीर के नज़रिए—aggression, sharpness, clarity—की अपनी ताकत है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में रणनीति और धैर्य की जो जरूरत है, वहां शायद अभी खामियाँ खुलकर सामने आ रही हैं।

खिलाड़ियों की बात करें—
स्ट्रोकप्ले अच्छा है, कच्ची प्रतिभा भी है, लेकिन “सीशन जीतने” वाली सोच उतनी पनपी नहीं है।
और यही अंतर मैदान पर दिख रहा है।

क्या भारत की टेस्ट supremacy वापस आ सकती है?

संभावना बिल्कुल है।
टैलेंट प्रचुर मात्रा में मौजूद है—जैसे बुमराह, सिराज, अश्विन, जडेजा, गिल, यशस्वी, KL राहुल, और ईशान किशन जैसे उभरते नाम।
मुद्दा सिर्फ execution और mindset का है।

शास्त्री जैसे लोग जिस बात की वकालत कर रहे हैं—“सीधी accountability”—वही शायद टीम को वापस पटरी पर लाने का रास्ता है।

अगली घरेलू सीरीज और अगले विदेश दौरे यह तय करेंगे कि यह गिरावट एक फेज है या नए युग का संकेत

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