IND vs PAK 2025 – एक क्रिकेट मैच या सियासी अखाड़ा? “खेल को खेल रहने दो” कहना आसान है, लेकिन जब पड़ोसी मुल्कों की बात आती है, तो भावनाएं अक्सर बल्ले-बॉल से आगे निकल जाती हैं।
मैदान से पहले, बवाल मैदान के बाहर
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच का मतलब सिर्फ एक स्पोर्टिंग इवेंट नहीं होता। ये उस तनाव की नब्ज को छूता है जो दशकों से दोनों देशों के बीच खिंची हुई है। चाहे वर्ल्ड कप हो या एशिया कप, INDvsPAK का मतलब होता है: आंखें टीवी पर, सोशल मीडिया पर जंग, और मैदान में हाई वोल्टेज ड्रामा।
लेकिन इस बार माहौल अलग है।
जब एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) ने सितंबर 2025 में होने वाले एशिया कप का शेड्यूल जारी किया और उसमें 14 सितंबर को भारत-पाकिस्तान मैच की तारीख रख दी—तो ट्विटर हो या फेसबुक, बवाल मच गया। बॉयकॉट की मांग ऐसे उठी जैसे कोई सियासी रैली चल रही हो।
“मैच नहीं होना चाहिए”: अजहरुद्दीन की दो टूक
भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने बयान दिया:
“मेरे हिसाब से तो ये मैच होना नहीं चाहिए… हालात ऐसे हैं कि हमें क्रिकेट से परे सोचना पड़ेगा।”
यह कोई हल्की-फुल्की राय नहीं थी। अजहर जैसे अनुभवी खिलाड़ी का ये कहना कि भारत को पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलनी चाहिए, उस जनभावना को साफ झलकाता है जो पिछले कुछ वक्त में बढ़ी है—खासतौर पर पहलगाम हमले और उसके बाद चले ऑपरेशन सिंदूर के बाद।
खेल नहीं, खींचतान
भारत और पाकिस्तान के बीच बाइलेटरल सीरीज तो 2012-13 के बाद से बंद है। और भारत की टीम को पाकिस्तान दौरे पर गए हुए दो दशक हो चुके हैं।
सिर्फ ICC टूर्नामेंट्स या एशिया कप जैसे मल्टी-नेशन इवेंट्स में ही दोनों टीमें आमने-सामने आती हैं।
अब सवाल ये है—क्या इतने तनाव में भी क्रिकेट खेला जाना चाहिए?
हरभजन सिंह, शिखर धवन, सुरेश रैना जैसे दिग्गजों ने भी पाकिस्तान के खिलाफ वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स में खेलने से इनकार कर दिया। ये महज़ एक इत्तेफाक नहीं है। ये पैटर्न है। ये एक नारा बनता जा रहा है—“ना खेलने का हक बनता है।”
क्या खेल और राजनीति को अलग किया जा सकता है?
कई लोग ये सवाल उठाते हैं: “क्यों खेल को राजनीति से जोड़ते हो?”
सही सवाल है। लेकिन आसान नहीं है।
पाकिस्तान से सीमा पर गोलियां चलें, और फिर मैदान में बल्लेबाज़ी करें—ये विरोधाभास हर किसी के गले नहीं उतरता। फैंस के लिए ये सिर्फ ‘स्पोर्टिंग राइवलरी’ नहीं, ये एक तरह का राष्ट्रीय गर्व या अपमान बन जाता है।
फैंस की भी राय बंटी हुई
जहां एक तबका ट्विटर पर #BoycottINDvsPAK ट्रेंड करवा रहा है, वहीं कुछ फैंस इसे एक क्रिकेटिंग क्लासिक मानते हैं जो साल में एक बार ज़रूर होना चाहिए। वो कहते हैं:
“क्रिकेट से ही तो रिश्ते सुधर सकते हैं।”
शायद। लेकिन पिछले 20 सालों में जितने भी मैच हुए हैं, क्या रिश्ते वाकई बेहतर हुए?
सरकार का फैसला ही आखिरी
अजहरुद्दीन ने ठीक कहा—अंत में फैसला भारत सरकार का होगा। BCCI भी उसी लाइन पर चलेगा जो नीति सरकार तय करेगी। लेकिन एक चीज़ तय है—ये सिर्फ एक मैच नहीं है। ये उन जज़्बातों का बवंडर है जिसे संभालना आसान नहीं।
क्या ये बहस थमेगी? शायद नहीं।
हर बार जब भारत-पाकिस्तान आमने-सामने आते हैं, ये सवाल फिर उठेगा। और हर बार जवाब आसान नहीं होगा।